विमल शुक्ला
मोदी की कसौटी पर खरा उतरना चुनौती तो निकाय चुनाव भी लेंगे परीक्षा
लखनऊ। सोमवार को जाट नेता भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने यूपी भाजपा की कमान अपने हाथ में ले ली। वह अब 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के यूपी में सेनापति होंगे और वह सीएम योगी के साथ मिलकर विपक्ष की चुनावी रणनीति को ध्वस्त करेंगे।
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माना जा रहा है कि इसलिए अगड़ा वर्ग को किनारे कर पिछड़ा वर्ग से आने वाले जाट नेता को भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सूबे की राजनीति में बड़ा दांव खेला है। अब यह दांव यूपी में भाजपा की राह को विपक्ष विहीन करता है या फिर कमजोर कड़ी बनकर उभरता है।
यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। फिलहाल यूपी में भाजपा के लिए मौजूदा समीकरण को देखते हुए यह माना जा रहा है कि भूपेन्द्र चौधरी को लोकसभा चुनाव में कड़ी कसौटी से गुजरना होगा।
अब बात यदि सियासी चुनौतियों की करें तो भूपेन्द्र सिंह की राह बहुत कठिन नहीं तो आसान भी नहीं है। सूबे में निकाय चुनाव होने हैं। पिछली बार निकाय चुनाव में भाजपा ने शानदार फतह हासिल की थी। जाट नेता को भी कुछ ऐसी ही चुनावी बिसात बिछानी होगी।
क्योंकि निकाय चुनाव भले ही आम चुनाव को प्रभावित न करते हों मगर इनका परिणाम विपक्ष के लिए जरूर फायदेमंद रहता है। मतलब यदि सत्तासीन पार्टी चुनाव मैदान में कमर कसने के बाद भी परिणाम अपने पक्ष में नहीं ला पाई तो आगामी आम चुनाव में यह मसला विपक्ष का प्रमुख चुनाव हथियार बनता है। ऐसे में निकाय चुनाव में शानदार फतह भूपेन्द्र सिंह चौधरी की सूबे में सियासत का पैमाना होगी।
नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा को लेकर वह साथ चलेंगे
इसके अलावा लोकसभा चुनाव 2024 में होने हैं। तैयारियों की बात करें तो भूपेन्द्र सिंह चौधरी लोकसभा चुनाव के सेनापति होंगे। मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिष्ठा को लेकर वह साथ चलेंगे। यूपी दिल्ली को सबसे ज्यादा सांसद देता है। कहते भी हैं कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है।
तो ऐसे में लोकसभा चुनाव में यूपी भाजपा के साथ केन्द्रीय नेतृत्व की उम्मीदों पर भी खरा उतरना नये अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगा।
बात यहीं खत्म नहीं होगी। दरअसल भाजपा की नजर पश्चिम जाटलैंड पर है। किसान आंदोलन के दौरान यहां पर भाजपा विरोधी लहर को भाजपाई बनाने की मुहिम चल रही है। पिछले विधान सभा चुनाव में खुद भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने मोर्चा सम्भाला और चुनावी फतह हासिल की। पश्चिमी यूपी की करीब डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटें जाट बाहुल्य मानी जाती हैं। भूपेन्द्र चौधरी खुद भी पश्चिम से ही आते हैं। ऐसे में खासकर पश्चिम क्षेत्र में पार्टी की इकबाल बुलंद करना प्रदेश अध्यक्ष के लिए बड़ी चुनौती होगा।